Rajani katare

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बंधन जन्मों का भाग -- 5

              "बंधन जन्मों का" भाग-5

पिछला भाग:--
बच्चों को कुछ समझ नहीं आ रहा,वैद्य जी ने जो 
माँ को दवाई दी थी... वही दवाई बापू को खिला 
दी बच्चों ने....पर कोई फायदा न हुआ....बुखार उतरने का नाम ही न ले रहा था.....
अब आगे:--
जैसे तैसे रात कटी...  न माँ का बुखार उतर रहा 
न बापू का.... दोनों बच्चे परेशान हो गये बच्चू 
दौड़ा दौड़ा वैद्य जी को बुलाने गया... देखा बाहर भी अफरा तफ़री मची  है... वैद्य जी के घर में भीड़
लगी है वैद्य जी जल्दी जल्दी सबको दवाई बना कर
दे रहे हैं....बच्चू दौड़ा दौड़ा घर आया दवाई लेकर
जब तक तो घर में कोहराम मच गया विमला का
रो रोकर बुरा हाल था....माँ बापू दोनों चल बसे....
गाँव में हर तरफ़ यही नज़ारा था.....

लोग गाँव छोड़ छोड़ के भगने लगे पता नहीं कौन सी बीमारी ने घेर लिया है... बुखार उतर नहीं रहा,
लोग चटपट हो रहे हैं.... हर घर में यही हाल था...
पता चला कोई कोई घर में तो एक भी व्यक्ति नहीं
बचा... काल के ग्रास बन गये... विमला की ससुराल में भी यही हाल था... आखिरकार विमला के ससुर जी विमला और बच्चू को लेकर शहर आ गये बेटे
के पास......

बच्चू को बारहवीं कक्षा में प्रवेश दिला दिया और
विमला घर गृहस्थी के चक्कर में पड़ गयी....
खेलने खाने की उमर में ही.... उसके कांधे पर गृहस्थी का बोझ आ गया... बालापन में शादी हो
गयी... वह समय ही ऐसा था बाल-विवाह की प्रथा
थी बच्चों का शादी ब्याह का मतलब ही नहीं पता
होता था... खैर साल डेढ़ साल के अंतर से विमला के दो बच्चे भी हो गये... एक बेटा और एक बेटी,
बच्चू अब कालेज की पढ़ाई कर रहा था.....

विमला के ससुर जी बहुत अच्छे थे... उसको घर के काम में भी मदद कर देते थे... बच्चों का भी ध्यान रखते....इसी बीच विमला फिर पेट से हो गयी....
बच्चे छोटे-छोटे.... बहुत परेशान हुयी नियत समय
पर विमला ने सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया....
समय बीतता चला गया बच्चू की भी नोकरी लग गयी... बड़ी बच्ची पाँच वर्ष की हो गयी विमला ने पास के ही स्कूल में नाम लिखा दिया... बैठना तो
सीखेगी.... स्कूल में बेटा भी साढ़े तीन वर्ष का हो गया... छोटी बिटिया अभी दो वर्ष की हुयी थी...

विमला का पति छुट्टी लेकर आया हुआ था...
आज सुबह-सुबह ही अपने पुराने दोस्तों के साथ घूमने जाने का कार्यक्रम था... नदिया में नहाने के
विचार से कपड़े भी साथ रख लिए... सुनो ज्यादा समय नहीं लगाना खाने के समय तक आ जाना...
आपके पसंद की पीली दाल और भंरवा परवल की सब्जी बनाऊंगी... फिर वो अपने रोजमर्रा के काम धाम में लगी रही.....पति अपने दोस्तों के साथ निकल गये.... विमला ने खाना भी नहीं खाया राह
तके तके सुबह से शाम हो गयी.... सब इधर से उधर हो रहे.... दोस्तों का घर भी नहीं मालुम....
क्या करें...? कुछ समझ नहीं आ रहा....रात होने को आ गयी... मन में कु शंकाएं घर करने लगीं क्यों नहीं आए अभी तक!! क्या बात है... किससे पूछें!!
क्रमशः--

   कहानीकार- रजनी कटारे
         जबलपुर ( म.प्र.)

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2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

10-Feb-2022 04:16 PM

बहुत खूबसूरत

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Rakash

10-Jan-2022 05:29 PM

Nice

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